ब्लाग गिरा सकता है, भाषा की दीवारें-आलेख


अंतर्जाल पर छद्म मित्रों और आलोचकों ने मेरी सोच को बहुत संकीर्ण बना दिया है। इसलिये अगर अपने ब्लाग/पत्रिकाओं पर जो आने वाली टिप्पणियों से अगर कोई विचार मेरे दिमाग में आता है तो सोचता हूं वह अपने किसी ब्लाग/पत्रिका पर लिखूं कि नहीं। फिर सोचता हूं कि अगर मैं दायरों में बंध गया तो लिखना मुश्किल हो जायेगा। इसके अलावा जो मेरे दिमाग में विचार है कल वह सत्य साबित हुआ तो फिर इस बात का कष्ट होगा कि मैंने उसे क्यों नहीं व्यक्त किया?

बहरहाल वर्डप्रेस के मेरे ब्लाग/पत्रिकाऐं निरंतर सक्रियता के कारण अंग्रेजी वेबवाईट लेखकों के दृष्टिपथ में बनी रहतीं हैं। इसके अलावा वर्डप्रेस के ब्लाग पर अंग्रेजी में शाब्दिक समानता के कारण अन्य भाषाओं के लेखक भी वहां आते हैं। मेरी कई पोस्टें अंग्रेजी श्रेणीं में घुसीं रहतीं हैं इसलिये अंग्रेजी वेबसाइट और ब्लाग लेखक कभी कभार उस पर अपनी टिप्पणियां लिख जाते हैं। इसमें एक परेशानी आती है। वह यह कि अगर वेबसाईट लेखक ने टिप्पणी रखी है तो ब्लाग उसे स्पैम में डाल देता है-यानि वह केवल ब्लाग लेखक को ही सीधे ब्लाग पर टिप्पणी लिखने देता है। इसका मतलब यह है कि वर्डप्रेस वेबसाइट लेखक को ब्लाग लेखक नहीं मानता। शुरू में मैं अंग्रेजी लेखकों की टिप्पणियों को महत्व नहीं देता था क्योंकि मुझे लगता था कि वह भला क्या पढ़ते होंगे? एक भारत के ही हिंदी और अंग्रेजी भाषा के लेखक ने अपनी टिप्पणी में जब यह बताया अनुवाद टूल से हिंदी को अंग्रेजी में पढ़ा जा सकता है तब मुझे हैरानी हुई और अंग्रेजी लेखकों की टिप्पणियां मैं पढ़ने लगा। इस पर मैंने एक पाठ भी लिखा था। उसके एक महीने के अंदर ही मुझे कृतिदेव का यूनिकोड, देवनागरी लिपि के अरबी लिपि में परिवर्तित करने वाला और फिर हिंदी अंग्रेजी का अनुवाद टूल मिल गया। इनका उपयोग करते हुए मैंने अपने पाठ लिख डाले।

अंग्रेजी हिंदी अनुवाद टूल का उपयोग करते हुए तो मैने दोनों भाषाओं में लिखा और पाठ अपने ब्लाग/पत्रिकाओं पर प्रकाशित किए। अनुवाद टूल में जब हिंदी का पाठ अनुवाद करने पर कुछ शब्द सही नहीं आये तो फिर वैकल्पिक शब्द उपयोग किये और शतप्रतिशत अंग्रजी अनुवाद किया। इसके बावजूद अनुवाद में क्रियाओं का जब अनुवाद सही नहीं देखा तो समझ में आया कि इसमें एक-एक पंक्ति को ध्यान से अनुवाद करना होगा। इसमें बहुत श्रम होता है। अपना पाठ लिखने में इतना समय नहीं लगता जितना उसका सही अनुवाद करने में लगता है। बहरहाल छोटे पाठों का उतना ही अंग्रेजी अनुवाद कर सकता हूं जितना मुझे समझ में आता है।

मुझे पता नहीं कि इस अंतर्जाल पर एक लेखक के रूप में मुझे कितनी प्रसिद्धि मिली है पर जिस तरह अंग्रेजी लेखक और पाठक मेरे ब्लाग/पत्रिकाओं को अपनी वेबसाईटों पर खोलकर पढ़ रहे हैं उससे थोड़ी हैरानी है। इनमें से मेरी एक हिंदी में लिखी और प्रकाशित पोस्ट पर एक टिप्पणी में लिखा गया कि मुझे अपने लिखे पाठ अनुवाद टूल में प्रयोग कर सुधारते हुए अपना पाठ लिखना चाहिए। कल ही एक ने लिखा कि मेरे पाठ के कुछ हिस्से सही अनुवाद नहीं हो पा रहे पर आप आप बहुत अच्छा लिखते हैं।
ऐसा लगता है कि अंग्रेजी की कुछ वेबसाईटें हिंदी के ब्लाग को अपने यहां लिंक करने का प्रयास कर रहीं है। संभव है कहीं इस बात के प्रयास हो रहे हैं कि जिन भाषाओं का अंग्रेजी में अधिकतम शुद्ध अनुवाद टूल उपलब्ध है उनको एक जगह लाया जाये। मेरे अधिकतर ब्लाग@पत्रिकाएं दो से तीन बार इसी अनुवाद टूल पर पढ़ी जा रही हैं। उनकी पसंद देखकर लगता है कि वह अध्यात्मिक संदेशों और मेरे चिंतन वाले विषयों वाले पाठों में अधिक रुचि ले रहे हैं। उसके बाद गंभीर कविताऐं उनकी पसंद हैं। हास्य कविताओं में उनकी दिलचस्पी नहीं है।
निष्कर्ष यह है कि अब हिंदी में लिखना केवल हिंदी पढ़ने वालों के लिए नहीं रह गया है। अनुवाद टूल ने अंग्रेजी भाषी लोग भी हिंदी में लिखे पाठों को पढ़ रहे हैं। इससे वह अन्य भाषी भी पढ़ सकते हैं जिन्हें अंग्रेजी आती है, पर अन्य भाषी अपने यहां लिंक नहीं कर सकते क्योंकि

1.जिन भाषाओं का अनुवाद टूल उपलब्ध है उनमें अधिकतर का अंग्रेजी में अधिक प्रतिशत सही अनुवाद हो रहा है पर उन अंग्रेजी का उन भाषाओं में अनुवाद निराशाजनक है। अगर कोई चीनी हिंदी के ब्लाग को अंग्रेजी में पढ़ सकता है पर चूंकि अंग्रेजी का चीनी में सही अनुवाद उपलब्ध नहीं है इसलिये यह संभव नहीं है कि हिंदी का पाठ पहले अंग्रेजी और फिर चीनी में पढ़ा जाये।
2.इन टूलों का अभी व्यापक प्रचार नहीं हुआ है और अभी तक जो लोग अंतर्जाल पर पढ़लिख रहे हैं उनके विचार अभी सीमित दायरे में हैं और उनके दृष्टिकोण में व्यापक बदलाव अभी आना शेष है।

जिस तरह अंतर्जाल में नित नये टूल आ रहे हैं इसलिये संभव है कोई ऐसा टूल आ जाये तो अन्य भाषाओं में हिंदी पाठों को पढ़ना संभव बना दे। अपने जिन पाठों को मैं इन टूलों के द्वारा पढ़ता देख रहा हूं उनसे मुझे लगता है कि भारतीय विषयों में अन्य विदेशी लोगों की व्यापक रुचि है और मानवीय स्वभाव, चरित्र और विचार जो सभी जगह एक समान है उस पर लिखा पाठ पढ़ने का वह लोग प्रयास कर रहे हैं।

मैंने शुरू में अधिक ब्लाग इसलिये बनाये थे क्योंकि मुझे कुछ आता जाता नहीं था। बाद में प्रयोग की दृष्टि से बनाये। ब्लाग स्पाट के ब्लाग का कोई अपना डेशबोर्ड नहीं है जबकि वर्डप्रेस का डेशबोर्ड न केवल दूसरों के ब्लाग पढ़ने के लिये हमारे पास लाता है बल्कि हमारे भी दूसरों के सामने ले जाता है। संभवतः इसलिये वहां के ब्लाग हमेशा आवागमन में रहते हैं और अन्य भाषियों और देशों के ब्लाग लेखकों से संपर्क बना रहता है। उनके ढेर सारी टिप्पणियां आती है। यह देखकर लगता है कि भाषा की दीवारें अब अधिक समय नहीं रहेंगी और हम लिख हिंदी में रहे हैं पर ब्लाग किसी भाषा विशेष का नहीं रहने वाला। यही कारण है कि अपनी बौद्धिक चतुराई से अल्पज्ञान अर्जित कर वाद चलाने और नारे लगाने वाले लोगों को यह ब्लाग जगत एक शत्रू की तरह दिखाई दे रहा है-क्योंकि उनके वाद पर वाह वाह और नारों पर हाहाकार मचाने वाले लोगों का झुंड ऐसे व्यापक संपर्कों के कारण सत्य से अवगत होता जायेगा और वह उनसे दूर होकर अकेले कर देगा। इससे उनकी दुकानें बंद हो जायेंगी। ऐसा केवल हिंदी में नहीं सभी भाषाओं में कथित विद्वानों के साथ होने वाला है। बहरहाल मैं एक जिज्ञासु व्यक्ति हूं इस उथल पुथल को इतनी निकट से देख रहा हूं। अगर में हिंदी भाषा में अंतर्जाल पर नहीं लिखता तो शायद उसकी ऐसी अनुभूतियां नहीं कर पाता। मैं इसी से संतुष्ट हूं कि नित नये लोगों से संपर्क और मित्रता बन जाती है। सबसे अच्छा यह कि यहां जाति, भाषा, धर्म, और अन्य भ्रामक आधारों पर स्थापित समूहों से अलग होकर लिखा जा रहा है। कुछ समय बाद जक राष्ट्रीय आधारों से बाहर निकलकर भी लिखा जायेगा तब विश्व का स्वरूप भी दिलचस्प होगा।

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टिप्पणियाँ

  • mahendra mishra  On जून 22, 2008 at 9:26 पूर्वाह्न

    bbahut achcha baat likhi hai ki blaag bhasha ki seemao ko gira /tod sakata hai . par ek baat or vichaar karne layak hai ki kuch blaagarao me prantavaad ki boo ati hai .bhai log doosare pranto ke blaagaro ko mahatv nahi dete hai . yah mera swayam ka anubhav hai .

  • ramadwivedi  On जून 23, 2008 at 4:49 पूर्वाह्न

    बहुत ज्ञानवर्धक जानकारी दी है आपने…बहुत बढियां…साधूवाद…

    डा. रमा द्विवेदी

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